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प्रयागराज कुंभ मेला ना बन जाए खूनी संघर्ष का मेला

दोनों अखाड़ा परिषद को एक नहीं होने देना चाहते कुछ महंत और पत्रकार

2025 का प्रयागराज कुंभ का मेला होने जा रहा है की तैयारी में प्रशासन पूर्ण रूप से लगा है जहां हम सनातनी की बात करते हैं वही संत समाज आपस में झगड़ने को तैयार है वर्चस्व की लड़ाई को लेकर अखाड़े के महंत के बीच विवाद जारी है यही नहीं हम सनातनी की बात करते हैं उसी सनातन में यदि संत आपस में झगड़ते हैं अन्य समाज हमारी हंसी ही उड़ता है इस झगड़े और संघर्ष के बीच का कारण अखाड़ा परिषद दो फाड़ में बना हुआ है कुछ निजी संत अपने स्वार्थ को सिद्ध होने के लिए संतों में एकता नहीं होने दे रहे वहीं कुछ ऐसे पत्रकार जो इन संतों के बीच नमक मिर्च लगाकर दरार का काम कर रहे हैं यदि 13 अखाडो की एकता बने तो अखाड़ा परिषद कहलाती है परंतु अखाड़ा परिषद दो फाड़ में होने कारण लगातार विवादों के बीच बनी रही है सभी अखाड़े एक नहीं हो पाए तो अखाड़ा परिषद का महत्व नहीं रह पाता देखना यह होगा के संत आपस में लड़ते रहे तो सनातन और प्रयागराज जैसे कुंभ मेले का क्या महत्व यही नहीं यदि संतों के बीच एकता नहीं हुई तो प्रयागराज का होने वाला कुंभ एक खूनी संघर्ष का कुंभ बनने के करीब पहुंच जाएगा और इस संघर्ष के होने का कारण कुछ निजी स्वार्थ वाले महंत व पत्रकार होंगे जो संतों के बीच एकता ना होने का ऐसे पत्रकार जो अपने निजी स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए संत समाज के बीच दरार का काम करते हैं! जहां संतों के बीच एकता होती थी निरंजनी अखाड़ा और महानिर्वाणी अखाड़े के संत पर दोनों अखाड़े के संत अध्यक्ष होने पर दो फाड़ में बट गए संतो के बीच प्रेम भाव होना अति आवश्यक है यदि दोनों अखाड़े एक होकर चले तो समझ में एक नया संदेश जाएगा अचरज की बात तो यह है दोनों अखाड़ा परिषद के अध्यक्षों के नाम एक ही है जो श्री महंत रवींद्र पुरी जी के नाम से जाने जाते हैं यदि दोनों महंत सूझबूझ का परिचय दें प्रयागराज का एक ऐतिहासिक कुंभ बन जाएगा और दोनों अखाड़ा परिषद एक हुई तो समझ में एक बड़ा संदेश जाएगा तो आज की घटना होने वाली घटना आज के सामने सनातन और संतों को शर्मिंदा करने वाली है

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