विश्व मानवाधिकार दिवस श्रीमहंत डॉ रविंद्र पुरी

आज का दिन हमें यह याद दिलाता है कि हर व्यक्ति को समान रूप से जीने, सोचने, बोलने और अपनी गरिमा के साथ जीवनयापन करने का अधिकार प्राप्त है। विश्व मानवाधिकार दिवस केवल किसी भावना का प्रतीक नहीं, बल्कि एक ऐसी चेतना है जो इंसानियत को सशक्त बनाती है।
यह हमें सिखाता है कि अधिकारों की रक्षा केवल दूसरों से मांगने से नहीं, बल्कि अपने भीतर जिम्मेदारी की भावना जगाने से होती है।
जब हर व्यक्ति अपने अधिकारों के साथ अपने कर्तव्यों को भी समझे, तभी समाज में वास्तविक समानता और न्याय स्थापित हो सकता है। हमें यह भी याद रखना चाहिए कि हमारे अधिकार किसी और के कर्तव्य से जुड़े होते हैं—इसलिए जब हम दूसरों के अधिकारों का सम्मान करते हैं, तो समाज स्वतः ही अधिक संतुलित और बेहतर बन जाता है।
आज के दौर में जहाँ भेदभाव, हिंसा और असमानता जैसी चुनौतियाँ अब भी सामने हैं, वहीं मानवाधिकारों का संदेश हमें एक नई दिशा देता है।
हमें यह स्वीकार करना होगा कि अधिकारों की रक्षा केवल संघर्ष से नहीं, बल्कि शिक्षा, जागरूकता और संवेदनशीलता से भी होती है।
इसलिए इस दिन का सही अर्थ तभी सार्थक होगा जब हम न केवल अपने अधिकारों के प्रति सजग रहें, बल्कि दूसरों के अधिकारों को भी उतनी ही गंभीरता से समझें। जब हर व्यक्ति अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभाएगा और दूसरों की गरिमा का सम्मान करेगा, तो निश्चित ही हमारा समाज अधिक सामंजस्यपूर्ण, शांतिपूर्ण और बेहतर बन सकेगा।
मानवाधिकार केवल संविधान में लिखे हुए नियम नहीं हैं, बल्कि यह हमारे जीवन की वह बुनियाद हैं जिन पर इंसानियत टिकती है। जब हम दूसरों के दुःख को महसूस करते हैं, अन्याय के खिलाफ आवाज उठाते हैं, और जरूरतमंदों की मदद के लिए आगे आते हैं, तब हम वास्तव में मानवाधिकारों के सच्चे पालनकर्ता बनते हैं।
हमें यह समझना होगा कि अधिकार और कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं—अगर हम अपने अधिकारों की रक्षा चाहते हैं, तो हमें अपने कर्तव्यों का भी ईमानदारी से पालन करना होगा। तभी हमारा समाज न सिर्फ सुरक्षित बल्कि संवेदनशील और न्यायपूर्ण बन पाएगा।
मां भगवती मनसा देवी का आशीर्वाद आप सब पर सदैव बना रहे। हर हर महादेव।



