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अखाड़े के महंतो की आपसी जंग अब अखाड़ा परिषद तक पहुंच गई

हरिद्वार। अखाड़े के महंतों की आपसी जंग अब अखाड़ा परिषद तक पहुंच गई है। जिसके चलते श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन के पंच परमेश्वर के श्री महंतों के एक गुट ने अखाड़ा परिषद निर्वाणी गुट से अलग होकर अखाड़ा परिषद निरंजनी गुट को अपना समर्थन दिया है। इसके साथ ही प्रयागराज कुंभ को बेतहर ढ़ग से सम्पन्न कराने के लिए शीघ्र ही अखाड़ा परिषद की बैठक बुलाने की अपील की है। कुल मिलाकर शांति, त्याग, तपस्या और भाईचारे का संदेश देने वाले कथित संत अब पूरी तरह से राजनीति पर उतारू हो गए हैं। त्यागियों के लिए अब वर्चस्व की सर्वोपरि हो गया है। अखाड़ा सूत्रों के मुताबिक उदासीन अखाड़े के एक गुट के श्रीमहंतों का अखाड़ा परिषद को दिया गया समर्थन कोई नैतिकता के आधार पर दिया गया समर्थन नहीं हैं। समर्थन का एकमात्र उद्देश्य उदासीन अखाड़े के पंचों में शामिल श्रीमहंत रघुमुनि महाराज को टारगेट करना है। बड़ा उदासीन अखाड़े में श्रीमहंतों के बीच विगत लम्बेसमय से चल रहा विवाद किसी से छिपा भी नहीं है और यही विवाद समर्थन की मुख्य वजह भी कही जा सकती है। सूत्रों के मुताबिक समर्थन का मजमून मौखिक तौर पर यह है कि अखाड़ा परिषद किसी भी प्रकार से रघुमुनि को अखाड़ा परिषद से बर्खास्त करने की घोषणा करे और रघुमुनि के खिलाफ बयानबाजी कर किसी भी तरह से श्रीमहंत रघुमुनि को हतोत्साहित किया जाए। कुल मिलाकर बड़ा उदासीन अखाड़े की जंग का नया मैदान अखाड़ा परिषद को बनाकर उसे भी मटियामेट करने का अपने स्वार्थ के लिए उठाया गया कदम है। वहीं अखाड़ा सूत्रों का कहना है कि समर्थन पत्र में प्रयागराज कुंभ 2025 की मोहर का प्रयोग किया गया है, जबकि कुंभ का अभी तक श्रीगणेश तक नहीं हुआ है। ऐसे में कुंभ की मोहर का प्रयोग करना भी अनुचित है। इसके साथ ही अखाड़े के श्रीमहंतों के बीच चल रहा विवाद न्यायालय में विचाराधीन है और उस पर न्यायालय द्वारा रोक लगाई हुई है। ऐसे में समर्थन के कोई मायने ही नहीं बनते। इसके साथ ही रघुमुनि को टारगेट करने का दूसरा उद्देश्य सूत्रों के मुताबिक इस बार प्रयागराज कुंभ को सम्पन्न कराने का जिम्मा रघुमुनि को है। जबकि कुछ अन्य महंतों की इच्छा अपनी देखरेख में स्वंय प्रयागराज कुंभ सम्पन्न कराने की है, जिससे की कुंभ की आड़ में मोटा माल इकट्ठा किया जा सके। सूत्र बताते हैं कि इस सारे विवाद के पीछे संतों की कैकई का बड़ा योगदान है। सूत्र बताते हैं कि जहां-जहां कैकई की भूमिका रही वहीं नए-नए विवाद उत्पन्न होते रहे। सूत्रों के मुताबिक अखाड़े के श्रीमहंतों के बीच चल रहे विवाद और मीडिया में उसको प्रसारित करवाने के चलते अखाड़े की धूमिल हो रही प्रतिष्ठा को देखते हुए अखाड़े के सभी भेखों के संतों की अखाड़े में बैठक हुई थी, जिसमें किसी भी प्रकार के विवाद को मीडिया या अन्य माध्यमों से सार्वजनिक करने पर बैठक में रोक लगाने का फरमान जारी किया था। बैठक में विवादों के निपटारे के लिए 25 सदस्यीय संतों की एक कमेटी का गठन किया था, जो विवाद के निपटारे के लिए अधिकृत की गई थी, किन्तु सूत्रों के मुताबिक समर्थन देने और समर्थन वापसी के लिए न तो पंचों के सभी महंतों को इसकी जानकारी दी गई और न ही कमेटी में इस प्रकार का कोई विषय रखा गया। जिसके चलते अब कमेटी के गठन पर भी सवाल खड़े होने लगे हैं। सूत्रों के मुताबिक अब शीघ्र ही बैठक बुलाकर इस मसले को 25 सदस्यीय कमेटी में रखा जा सकता है, जिस कारण से विवाद फिर से गहरा सकता है।

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