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परषोत्तम रूपाला की टिप्पणी से गुजरात में राजपूत गुस्से में; बीजेपी की चिंता बढ़ी?

जिस पटेल और क्षत्रिय गठजोड़ ने बीजेपी को गुजरात में एकछत्र राज दे दिया, अब उसी गठजोड़ में दरार पड़ गई दिखती है। राज्य में बीजेपी के सामने ऐसी चुनौती सामने आ गई है, जो चुनाव में उसके लिए बेहद ख़तरनाक तक हो सकती है। पटेल समुदाय से आने वाले बीजेपी नेता व केंद्रीय मंत्री परषोत्तम रूपाला ने क्षत्रियों पर टिप्पणी क्या कर दी, अब क्षत्रियों ने उनके ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया है। रूपाला के समर्थन में जब पाटीदार समुदाय का संगठन आया और पोस्टर चिपकाए तो चुनाव आयोग के अधिकारियों ने यह कहते हुए पोस्टर हटा दिए कि यह चुनावी आचार संहिता का उल्लंघन है। राजपूत समुदाय के लोग अब रूपाला को उम्मीदवारी से हटाने की मांग कर रहे हैं।

 

पटेल-क्षत्रिय समुदाय के बीच में यह दरार बीजेपी के लिए कितना नुक़सानदेह हो सकती है और इन दो समुदायों ने कैसे बीजेपी को गुजरात में स्थापित कर दिया है, इसको जानने से पहले यह जान लें कि आख़िर रूपाला को लेकर यह विवाद क्या है।

दरअसल, पिछले एक सप्ताह से गुजरात में सौराष्ट्र क्षेत्र उबाल पर है। वहाँ क्षत्रियों पर केंद्रीय मंत्री परषोत्तम रूपाला की टिप्पणी को लेकर प्रभावशाली राजपूत समुदाय द्वारा बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन देखा जा रहा है।

 

इस चुनाव में राजकोट से बीजेपी के उम्मीदवार बनाए गए रूपाला द्वारा कई बार माफी मांगने के बावजूद विरोध कम नहीं हो पा रहा है। राजपूत समुदाय के लोग मांग कर रहे हैं कि रूपाला को लोकसभा की दौड़ से बाहर कर दिया जाए। पिछले हफ्ते रूपाला के आवास के पास उनका पुतला जलाने के आरोप में तीन लोगों को गिरफ्तार किया गया था।

 

गुजरात में लोकसभा चुनाव से कुछ हफ्ते पहले हुआ यह घटनाक्रम भाजपा के लिए उसके गढ़ माने जाने वाले राज्य में नया सिरदर्द बन गया है।

 

गुजरात में राजपूतों की आबादी लगभग 17% है और सौराष्ट्र-कच्छ क्षेत्र के कुछ हिस्सों में उनका प्रभाव है। राज्य में पाटीदारों की आबादी भी क़रीब 18 फ़ीसदी है।

राज्यसभा सांसद परषोत्तम रूपाला ने पिछले महीने मार्च में एक दलित कार्यक्रम में विवाद खड़ा कर दिया था। द वायर की रिपोर्ट के अनुसार राजकोट में दलित समुदाय में भजन समारोह में भाग लेने के दौरान रूपाला ने टिप्पणी की कि दलित डटे रहे हैं, लेकिन राजपूत/क्षत्रियों ने ‘रोटी-बेटी संबंध’ कहा था- बेटियों को ‘विधर्मियों’ के साथ विवाह कराने को। इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार रूपाला ने कथित तौर पर कहा, ‘…यहाँ तक कि राजाओं और राजघरानों ने भी अंग्रेजों के सामने घुटने टेक दिए, उनके साथ पारिवारिक संबंध बनाए, उनके साथ रोटी बाँटी और यहां तक कि अपनी बेटियों की शादी भी उनसे की। लेकिन हमारे रुखी समाज (एक दलित समुदाय) ने न तो अपना धर्म बदला और न ही ऐसे संबंध स्थापित किए। हालाँकि उन्हें सबसे अधिक सताया गया।’ यह वीडियो वायरल हो गया। इसके बाद विभिन्न क्षत्रिय संगठनों और राजपूतों ने आक्रोश जताया।

 

ऐसी प्रतिक्रिया के बाद पाटीदार समुदाय से आने वाले रूपाला ने अगले दिन माफी मांगी। फिर 29 मार्च को उन्होंने राजपूत समुदाय के नेताओं की एक सभा में हाथ जोड़कर सार्वजनिक रूप से माफी मांगी। माफी माँगने से राजपूतों पर असर नहीं पड़ा, जिन्होंने भाजपा से रूपाला की उम्मीदवारी वापस लेने या 7 मई के लोकसभा चुनाव में हार का सामना करने के लिए तैयार रहने को कहा।

 

इधर, परषोत्तम रूपाला के समर्थन में पाटीदार संगठन आ गए हैं। एक पाटीदार संगठन द्वारा लगाए गए कई बैनर शुक्रवार को गुजरात के राजकोट शहर में चुनाव अधिकारियों ने आदर्श आचार संहिता का हवाला देते हुए हटा दिए। रूपाला द्वारा की गई कथित आपत्तिजनक टिप्पणियों पर विवाद के बीच गुरुवार को ये बैनर सामने आए। बैनरों पर रूपाला की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गले लगाते हुए तस्वीर थी और संदेश था: ‘मैं हिंदुत्व के साथ हूं, मैं बीजेपी के साथ हूं, मैं नरेंद्र मोदी के साथ हूं, मैं परषोत्तम रूपाला के साथ हूं।’ नेशनल हेरल्ड की रिपोर्ट के अनुसार स्थानीय पीएएएस संयोजक मीत बवेरिया ने कहा कि पाटीदार अनामत आंदोलन समिति के सदस्यों ने गुरुवार रात शहर के अंबिका टाउनशिप इलाके में ये बैनर लगाए थे।

 

राजपूत समुदाय के सदस्यों ने नरम पड़ने से इनकार कर दिया है और अपना विरोध तेज कर दिया है। समुदाय ने रूपाला को लोकसभा उम्मीदवार के रूप में नहीं हटाए जाने पर हर जिले में उनका पुतला जलाने का संकल्प लिया है।

इस विवाद को ख़त्म करने के लिए एक दिन पहले ही बैठक भी हुई। राजपूत समुदाय और भाजपा के प्रतिनिधियों के बीच बैठक बिना किसी हंगामे के समाप्त हो गई क्योंकि समुदाय के नेता रूपाला की उम्मीदवारी वापस लेने की अपनी मांग पर अड़े रहे।

 

इन दोनों समुदायों के बीच तनातनी बीजेपी के लिए बड़ी चिंता की वजह हो सकती है। ऐसा इसलिए कि भाजपा जब सत्ता में आई थी तो इसके पीछे वजह पटेल-क्षत्रिय का सामाजिक समीकरण बताया गया था। केशुभाई पटेल-शंकरसिंह वाघेला की जोड़ी एक ऐसी पटेल-क्षत्रिय टीम थी जिसने 1995 में गुजरात में भाजपा को पहली जीत दिलाई थी।

 

एक स्कूल प्रिंसिपल से राजनेता बने 70 वर्षीय रूपाला अस्सी के दशक में गुजरात में भाजपा में शामिल होने वाले पहले कुछ लोगों में से एक थे। उन्होंने मोदी सरकार में मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी का काम संभाला। रूपाला सौराष्ट्र के कड़वा पटेल हैं और वह राजकोट से भाजपा के लोकसभा उम्मीदवार हैं। उन्हें मौजूदा सांसद मोहन कुंडरिया के स्थान पर नामांकित किया गया।

 

लोकसभा चुनाव की गहमागहमी के बीच रूपाला के बयान ने राजनीतिक गलियारों में गर्मी बढ़ा दी है। वैसे, यह बयान बीजेपी के लिए चिंता की बात तो है, लेकिन बीजेपी को ऐसे मामलों से निपटने में महारत हासिल है। माना जा रहा है कि अमित शाह ने इस मामले में मोर्चा संभाल लिया है और इसको निपटाने की कोशिश कर रहे हैं। पीएम मोदी अपने गृह राज्य गुजरात को लेकर बेहद संवेदनशील रहे हैं। अब देखना है कि बीजेपी के लिए पाटीदार और क्षत्रिय के बीच मौजूदा खटास दूर होती है या फिर इसका असर चुनाव में पड़ता है!

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