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मानव जीवन दैवी और आसुरी शक्तियों का मिला-जुला रूप है: श्री रवींद्र पुरी महाराज

हरिद्वार, 21 अक्टूबर अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्री निरंजनी अखाड़े के महंत श्री रवींद्र पुरी जी महाराज ने जीवन की सार्थकता को समझाते हुए अपने भक्तजनों को बताया कि मानव जीवन दैवी और आसुरी प्रवृत्तियों का एक मिला-जुला रूप है। जीवन में दोनों वृत्तियाँ सक्रिय रहने का प्रयत्न करती रहती हैं। मुक्ति के आकांक्षी व्यक्ति को चाहिए कि वह अपना सारा सहयोग दैवी प्रवृत्तियों को बढ़ाने, प्रोत्साहित करने तथा पालने में लगाए। दैवी वृत्ति के लक्षण हैं-परिश्रम, पुरुषार्थ, त्याग प्रसन्नता, उदारता, उत्साह, आशा तथा मर्यादा आदि, जिनको ग्रहण करने से मनुष्य की आत्मा में हर्ष तथा आनंद का प्रकाश आता है और संसार-समर में एक साहसी योद्धा की तरह अविरल संघर्ष करते रहने का बल प्राप्त होता है महाराज जी ने आगे सांसारिक प्रवृत्तियों के बारे में बताते हुए कहा यदि चिढ़ाने, कुढ़ाने या अपमान करने के लिए कोई कुछ कहे, या इशारा करे, गुप्त-पत्रों से डराए, दीवारों पर कुछ लिख दे, तो उसकी अवहेलना कर देने से अपमान करने वाले को आंतरिक पीड़ा पहुँचती है। चिढ़ाना एक प्रकार के दूषित संकेत हैं, जिन्हें ग्रहण करने से चिढ़ाने वाले को प्रसन्नता, न ग्रहण करने से दु:ख होता है। संकेत को न ग्रहण करना ही चिढ़ाने वाले के लिए सबसे बड़ी सजा है l

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